More Coverage
Twitter Coverage
Join Satyaagrah Social Media
भगवान विष्णु का नृसिंह अवतार: अपने भक्त प्रह्लाद को बचाने एवं आततायी का नाश करने हेतु भगवान विष्णु ने लिया चौथा अवतार
Page 1 of 2
भगवान नरसिंह के अवतार से दो बातें तो चरितार्थ होती हैं कि भगवान हमारे आस-पास हर एक वस्तु में है हर एक इंसान में है हर एक जीव में तभी तो भगवान नरसिंह खंभे से प्रगट हो गए। और दूसरी यह कि जो कोई भी सच्चे मन से भगवान की आराधना करता है भगवान उसका साथ कभी नहीं छोड़ते हैं। प्रहलाद सच्चा भक्त था इसलिए उसका बाल भी बांका नहीं हो सका । कहते हैं ना जाको राखे साइयां मार सके ना कोई। भगवान विष्णु का नृसिंह अवतार इतना ज्यादा विध्वंसक था कि स्वयं उनका भक्त प्रह्लाद भी इससे डर गया था। तब भगवान शिव को शरभ अवतार लेकर उन्हें शांत करवाना पड़ा था। भगवान विष्णु के दशावतारों में से नरसिंह अवतार चतुर्थ अवतार है। इसे नृसिंह अवतार भी कहते हैं जिसमें उनका आधा शरीर सिंह तथा आधा मानव का था।
सतयुग में ऋषि कश्यप के दो पुत्र थे हिरण्याक्ष और हिरणाकश्यप। हिरण्याक्ष भगवान ब्रह्म से मिले वरदान की वजह से बहुत अहंकारी हो गया था। अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए वो भूदेवी को साथ लेकर पाताल में भगवान विष्णु की खोज में चला गया।
भगवान विष्णु ने वराह अवतार में उसके साथ युद्ध किया और उसका विनाश कर दिया। लेकिन संसार के लिए खतरा अभी टला नही था क्योंकि उसका भाई हिरणाकश्यप अपने भाई के मौत की बदला लेने को आतुर था।
उसने देवताओ से बदला लेने के लिए अपनी असुरो की सेना से देवताओ पर आक्रमण कर दिया। हिरणाकश्यप देवताओ से लड़ता लेकिन हर बार भगवान विष्णु उनकी मदद कर देते।
हिरणाकश्यप ने सोचा “अगर मुझे विष्णु को हराना है तो मुझे अपनी रक्षा के लिए एक वरदान की आवश्यकता है। क्योंकि मै जब भी देवताओ और मनुष्यों पर आक्रमण करता हु , विष्णु मेरी सारी योजना तबाह कर देता है ……उससे लड़ने के लिए मुझे शक्तिशाली बनना पड़ेगा ।
अपने दिमाग में ऐसे विचार लेकर वो वन की तरफ निकल पड़ता है और भगवान ब्रह्मा की तपस्या में लीन हो जाता हो। वो काफी लम्बे समय तक तपस्या में इसलिए रहना चाहता था ताकि वो भगवान ब्रह्मा से अमर होने का वरदान मांग सके। इस दौरान वो अपने ओर अपने साम्राज्य के बारे में भूलकर कठोर तपस्या में लग जाता है।
इस दौरान इंद्रदेव को ये ज्ञात होता है कि हिरणाकश्यप असुरो का नेतृत्व नही कर रहा है। इंद्रदेव सोचते है कि ” यदि इस समय असुरो को समाप्त कर दिया जाए तो फिर कभी वो आक्रमण नही कर पाएंगे। हिरणाकश्यप के बिना असुरो की शक्ति आधी है अगर इस समय इनको खत्म कर दिया जाए तो हिरणाकश्यप के लौटने पर उसका आदेश मानने वाला कोई शेष नही रहेगा।
ये सोचते हुए इंद्र अपने दुसरे देवो के साथ असुरो के साम्राज्य पर आक्रमण कर देते है।इंद्रदेव के अपेक्षा के अनुसार हिरणाकश्यप के बिना असुर मुकाबले में कमजोर पड़ गये और युद्ध में हार गये। इंद्रदेव ने असुरो के कई समूहों को समाप्त कर दिया।
हिरणाकश्यप की राजधानी को तबाह कर इन्द्रदेव ने हिरणाकश्यप के महल में प्रवेश किया। जहा पर उनको हिरणाकश्यप की पत्नी कयाधू नजर आयी। इंददेव ने हिरणाकश्यप की पत्नी को बंदी बना लिया ताकि भविष्य में हिरणाकश्यप के लौटने पर उसके बंधक बनाने के उपयोग कर पाए। इंद्रदेव जैसे ही कयाधू को इंद्र लोक लेकर जाने लगे महर्षि नारद प्रकट हुए और उसी समय इंद्र को कहा “इंद्रदेव रुक जाओ आप ये क्या कर रहे हो ” ।
महर्षि नारद इंद्रदेव के कयाधू को अपने रथ में ले जाते देख क्रोधित हो गये। इंददेव में नतमस्तक होकर महर्षि नारद से कहा “महर्षि हिरणाकश्यप के नेतृत्व के बिना असुरो पर आक्रमण किया है और मेरा मानना है कि असुरो के आतंक को समाप्त करने का यही समय है।
वहा के विनाश को देखकर महर्षि नारद ने क्रोधित स्वर में कहा “हा ये सत्य है मै देख सकता हूं, लेकिन ये औरत इसमें कहा से आयी , क्या इसने तुमसे युद्ध किया , मुझे ऐसा नही लग रहा है कि इसने तुम्हारे विरुद्ध कोई शस्र उठाया है फिर तुम उसको क्यों चोट पंहुचा रहे हो ? “
इंद्रदेव ने महर्षि नारद की तरफ देखते हुए जवाब दिया कि वो उसके शत्रु हिरणाकश्यप की पत्नी है जिसे वो बंदी बना करले जा रहा है ताकि हिरणाकश्यप कभी आक्रमण करे तो वो उसका उपयोग कर सके। महर्षि नारद ने गुस्से में इन्द्रदेव को कहा कि केवल युद्ध जीतने के लिए दुसरे की पत्नी का अपहरण करोगे और इस निरपराध स्त्री को ले जाना महापाप होगा।
इंद्रदेव को महर्षि नारद की बाते सुनने के बाद कयाधू को रिहा करने के अलावा कोई विकल्प नही था। इंद्रदेव ने कयाधू को छोड़ दिया और महर्षि नारद को उसका जीवन बचाने के लिए धन्यवाद दिया।
महर्षि नारद ने पूछा कि असुरो के विनाश के बाद वो अब कहा रहेगी। कयाधू उस समय गर्भवती थी और अपनी संतान की रक्षा के लिए उसने महर्षि नारद को उसकी देखभाल करने की प्रार्थना की। महर्षि नारद उसको अपने घर लेकर चले गये और उसकी देखभाल की।
इस दौरान वो कयाधू को विष्णु भगवान की कथाये भी सुनाया करते थे जिसको सुनकर कयाधू को भगवान विष्णु से लगाव हो गया था। उसके गर्भ मर पल रहे शिशु को भी विष्णु भगवान की कहानियों ने मोहित कर दिया था।
समय गुजरता गया एक दिन स्वर्ग की वायु इतनी गर्म हो गयी थी कि सांस लेना मुश्किल हो रहा था। कारण खोजने पर देवो को पता चला कि हिरणाकश्यप की तपस्या बहुत शक्तिशाली हो गयी थी जिसने स्वर्ग को भी गर्म कर दिय था। इस असहनीय गर्मी को देखते हुए देव भगवान ब्रह्मा के पास गये और मदद के लिए कहा। भगवान ब्रह्मा को हिरणाकश्यप से मिलने के लिए धरती पर प्रकट होना पड़ा। भगवान ब्रह्मा हिरणाकश्यप की कठोर तपस्या से बहुत प्रस्सन हुए और उसे वरदान मांगने को कहा।
हिरणाकश्यप ने नतमस्तक होकर कहा “भगवान मुझे अमर बना दो ”
भगवान ब्रह्मा ने अपना सिर हिलाते हुए कहा “पुत्र , जिनका जन्म हुआ है उनकी मृत्यु निश्चित है मै सृष्टि के नियमो को नही बदल सकता हु कुछ ओर मांग लो ”
हिरणाकश्यप अब सोच में पड़ गया क्योंकि जिस वरदान के लिए उसने तपस्या की वो प्रभु ने देने से मना कर दिया |हिरणाकश्यप अब विचार करने लगा कि अगर वो असंभव शर्तो पर म्रत्यु का वरदान मांगे तो उसकी साधना सफल हो सकती है। हिरणाकश्यप ने कुछ देर ओर सोचते हुए भगवान ब्रह्मा से वरदान मांगा।
“प्रभु मेरी इच्छा है कि मै ना तो मुझे मनुष्य मार सके और ना ही जानवर , ना मुझे कोई दिन में मार सके और ना ही रात्रि में , ना मुझे कोई स्वर्ग में मार सके और ना ही पृथ्वी पर , ना मुझे कोई घर में मार सके और ना ही घर के बाहर , ना कोई मुझे अस्त्र से मार सके और ना कोई शस्त्र से ” ।
हिरणाकश्यप का ये वरदान सुनकर एक बार तो ब्रह्मा चकित रह गये कि हिरणाकश्यप का ये वरदान बहुत विनाश कर सकता है लेकिन उनके पास वरदान देने के अलावा ओर कोई विकल्प नही था। भगवान ब्रह्मा ने तथास्तु कहते हुए मांगे हुए वरदान के पूरा होने की बात कही और वरदान देते ही भगवान ब्रह्मा अदृश्य हो गये।
हिरणाकश्यप खुशी से अपने साम्राज्य लौट गया और इंद्रदेव द्वारा किये विनाश को देखकर बहुत दुःख हुआ। उसने इंद्रदेव से बदला लेने की ठान ली और अपने वरदान के बल पर इंद्रलोक पर आक्रमण कर दिया। इंद्रदेव के पास कोई विकल्प ना होते हुए वो सभी देवो के साथ देवलोक चले गये। हिरणाकश्यप अब इंद्रलोक का राजा बन गया।
हिरणाकश्यप अपनी पत्नी कयाधू को खोजकर घर लेकर आ गया। कयाधू के विरोध करने के बावजूद हिरणाकश्यप मनुष्यों पर यातना ढाने लगा और उसके खिलाफ आवाज उठाने वाला अब कोई नही था। अब कयाधू ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम प्रहलाद रखा गया।जैसे जैसे प्रहलाद बड़ा होता गया वैसे वैसे हिरणाकश्यप ओर अधिक शक्तिशाली होता गया।
हालांकि प्रहलाद अपने पिता से बिलकुल अलग था और किसी भी जीव को नुकसान नही पहुचता था। वो भगवान विष्णु का अगाध भक्त था और जनता उसके अच्छे व्यवाहर की वजह से उससे प्यार करती थी।
Support Us
Satyagraha was born from the heart of our land, with an undying aim to unveil the true essence of Bharat. It seeks to illuminate the hidden tales of our valiant freedom fighters and the rich chronicles that haven't yet sung their complete melody in the mainstream.
While platforms like NDTV and 'The Wire' effortlessly garner funds under the banner of safeguarding democracy, we at Satyagraha walk a different path. Our strength and resonance come from you. In this journey to weave a stronger Bharat, every little contribution amplifies our voice. Let's come together, contribute as you can, and champion the true spirit of our nation.
ICICI Bank of Satyaagrah | Razorpay Bank of Satyaagrah | PayPal Bank of Satyaagrah - For International Payments |
If all above doesn't work, then try the LINK below:
Please share the article on other platforms
DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text. The website also frequently uses non-commercial images for representational purposes only in line with the article. We are not responsible for the authenticity of such images. If some images have a copyright issue, we request the person/entity to contact us at This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it. and we will take the necessary actions to resolve the issue.
Related Articles
- Lakshmi Narasimha Swamy Temple, Antarvedi, Andhra Pradesh
- Jagannath Temple administration issues clarification on proposed sale of temple lands
- A new symbol of Hindutva pride, Shri Kashi Vishwanath Temple Corridor
- Gita Press Gorakhpur – Bringing Sacred Hindu Texts to Every Hindu Home
- Culture And Heritage - Meenakshi Temple Madurai
- Shri Murudeshwar Temple: Home To The World’s Second Tallest Shiva Statue
- Srikalahasti Temple, Dakshina Kailash
- Birsa Munda: The tribal folk hero who was God to his people by the age of 25
- Dear NSUI, Bhagat Singh And Subhas Chandra Bose Admired Savarkar And His Ideas
- Biggest Wonder of the World : Kitchen of Lord Shri Jagannath